*कुजूर की मौत के साथ ही दफ़न हो गये सारे राज़*
#कौन किसको ब्लेकमैल कर रहा था?
#कौन ब्रह्मांड सुंदरियों को आगे कर ड्रग्स की तस्करी कर रहा था?
#किसके द्वारा करोड़ों रुपए ब्याज पर दिए गए थे?
#कुजूर के बंगले पर तैनात केयर टेकर किसका आदमी है?
#आशी पर शादी करने का दबाव कौन डाल रहा था?
छतरपुर की सिटी कोतवाली के टीआई पद पर तैनाती के दौरान अरविंद कुजूर ने 6 मार्च की शाम पेप्टेक टाउन स्थित बंगले में सर्विस पिस्टल से कनपटी पर गोली क्या मारी उनकी मौत के साथ तमाम सवाल ही दफन हो गए। कई ज्वलंत सवालों के जवाब देने से बड़े अधिकारी बच रहे हैं। आखिर इसकी वजह में वो कौन सा राज है जिसके उजागर हो जाने पर बवंडर खड़ा हो सकता है। आमतौर पर किसी घटना दुर्घटना में मौत हो जाने पर मौत की पुष्टि करने के लिए तुरंत अस्पताल ले जाया जाता है। परंतु कुजूर का शव अर्ध रात्रि के बाद जिला अस्पताल क्यों भेजा गया? कमरे से बरामद संदिग्ध वस्तुओं को पुलिस द्वारा जब्त किया जाता है, लेकिन कैश आदि उनकी पत्नी को सौंप दी गई।
ऐसे में फिल्म शोले का वह बहुचर्चित डायलॉग याद आ रहा है जो मौसी और अभिताभ बच्चन के मध्य हुआ था। जो इस प्रकरण में फिट बैठता है।
*मौसी: एक बात की दाद दूंगी बेटा! भले सौ बुराइयां हैं तुम्हारे दोस्त में, फिर भी तुम्हारे मुंह से उसके लिए तारीफें ही निकलती हैं।*
*जय:अब क्या करूं मौसी... मेरा तो दिल ही कुछ ऐसा है।*
इतने सारे सवालों और इल्जामों के बाद भी कुजूर का महिमा मंडन किया जाता रहा है। सारा दोष आशी और उसके कथित प्रेमी पर डाल कर पुलिस ने अपना दामन बचाने की असफल कोशिश की है। सत्ता और संगठन ने हमेशा की तरह मौन व्रत धारण कर लिया है। इसलिए कि कहीं उनकी कलई न खुल जाए।
तीस घंटे तक दोनों कथित आरोपी उसी बंगले में डेरा डाले हुए थे, और उनके रुखसत होते ही यह हादसा हो गया। सर्व शक्तिमान टीआई कुजूर जिसके हाथ में रोजनामचा रहता है वह अपने साथ होने वाली ब्लेकमेलिंग को उसमें दर्ज कर सकता था। वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में भी मामला लाया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
पुलिस ने अपनी फजीहत से बचने के लिए केवल एक बिंदु पर अपनी कार्रवाई सीमित कर इस तमाम रहस्यों से भरी कहानी का पटाक्षेप कर दिया है।
वरिष्ठ अधिकारियों की नाक के नीचे सैक्स स्कैंडल, ड्रग स्कैंडल, लूट खसोट कर करोड़ों रुपए वसूले जाते थे और सभी बेखबर बने रहे। जो पुलिस इतनी अंतर्यामी है कि उसे डकैती की योजना बना रहे डकैतों की खबर लग जाती है, उसे यह सब कुछ पता नहीं चला? सोशल मीडिया का हीरो, जांबाज, सिंघम, पता नहीं कितने अलंकार उनके खाते में दर्ज थे। लगता है कि कुजूर ने अपने कार्यकाल में इतने ज्यादा कट्टे बरामद किए हैं कि उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया जा सकता है।
बहरहाल उन्हें सुसाइड से मरणोपरांत नियम विरुद्ध गार्ड आफ आनर दिया जा चुका है। जबकि वह ड्यूटी पर भी नहीं थे। अभी तक तो यही परंपरा है कि ड्यूटी के दौरान शहीद होने पर, दुर्घटनाग्रस्त होने पर ही गार्ड आफ आनर दिया जाता है।
यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है कि किसी की भी मृत्यु पर उसके सद्गुणों की सुगंध चारों दिशाओं में फैलती है, उसी प्रकार दुष्कर्मों को भुला दिया जाता है। परंतु इस मामले में मौत के बाद ही परत दर परत अफसाने हवा में तैर रहे हैं। रोज एक नई पटकथा सामने आ रही है।
*काहु न कोउ सुख दुख कर दाता।*
*निज कृत करम भोग सबु भ्राता।।*